मंदिर की घंटी हम प्रवेश करते ही क्यों बजाते हैं?

भारत को देवी-देवताओं की पवित्र भूमि माना जाता है, जहां हर राज्य और हर शहर में हजारों प्राचीन और भव्य मंदिर स्थित हैं। इन मंदिरों के मुख्य द्वार पर अक्सर आपको लटकी हुई घंटियाँ या विशाल घंटे दिखाई देंगे, जिन्हें श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते ही श्रद्धापूर्वक बजाते हैं।

लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है —

  • आख़िर मंदिर में प्रवेश करते ही घंटा क्यों बजाया जाता है?
  • क्या इससे भगवान प्रसन्न होते हैं, या यह किसी आध्यात्मिक संकेत का हिस्सा है?
  • क्या घंटा बजाकर हम भगवान को अपने आगमन की सूचना देते हैं?

अगर आपके मन में भी ये सवाल कभी उठे हैं, तो आइए आज हम जानते हैं —
मंदिरों में घंटा लगाने का असली उद्देश्य क्या है, और प्राचीन ऋषि-मुनियों और वास्तुविज्ञों ने इसे मंदिरों का अभिन्न हिस्सा क्यों बनाया।

मंदिर की घंटी का प्राचीन रहस्य

Ancient temple with Temple Bell Source (Pinterest)
Ancient temple with Temple Bell Source (Pinterest)

प्राचीन भारत के आचार्यों, ऋषि-मुनियों और मंदिर-निर्माताओं ने घंटी को केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि एक ऊर्जावान और वैज्ञानिक यंत्र के रूप में स्थापित किया था।
स्कंद पुराण के अनुसार, जब मंदिर की घंटी (Temple Bell) बजती है, तो उससे उत्पन्न होने वाली ध्वनि ‘ॐ’ के स्वरूप की होती है  जो ब्रह्मांड की मूल ध्वनि मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस ध्वनि को सुनने और उत्पन्न करने से साधक को उसी प्रकार पुण्य की प्राप्ति होती है, जैसा ‘ॐ’ का जाप करने से होती है।

ध्वनि और संगीत का प्रभाव: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

Sound and Music Effects in Human body Source ( Pinterest)
Sound and Music Effects in Human body Source ( Pinterest)

मंदिर की घंटी (Temple Bell) की शक्ति को समझने से पहले, यह जानना आवश्यक है कि ध्वनि और संगीत हमारे शरीर, मन और आत्मा पर कितना गहरा प्रभाव डालते हैं।

प्राचीन काल में, भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी की मधुर ध्वनि इतनी प्रभावशाली थी कि गोपियाँ, ग्वालबाल और यहाँ तक कि पशु-पक्षी तक उनकीओर आकर्षित हो जाते थे। बांसुरी की धुन सुनकर सभी चेतन और अचेतन जीव एक दिव्य ऊर्जा की ओर खिंच जाते थे।

अगर आपको लगता है कि श्रीकृष्ण तो भगवान थे, इसलिए उनका संगीत चमत्कारी था –

तो याद रखिए, मानव होते हुए भी तानसेन ने दीपक राग गाकर दीप प्रज्वलित कर दिए थे।

ये ऐतिहासिक घटनाएँ सिद्ध करती हैं कि ध्वनि मात्र कंपन नहीं होती, बल्कि यह एक ऊर्जा रूप है जो हमारे मस्तिष्क, मन और ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को सक्रिय करती है।

मंदिर की घंटी: मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतुलन का माध्यम 

Echoes of Devotion Seeking blessings, finding peace
Echoes of Devotion Seeking blessings, finding peace

अक्सर यह समझा जाता है कि मंदिर में घंटी भगवान को प्रसन्न करने के लिए बजाई जाती है, लेकिन वास्तव में इसका उद्देश्य भक्त के मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन को स्थापित करना होता है।

जब कोई व्यक्ति मंदिर आता है, तो वह दैनिक जीवन की चिंताओं, दुखों और मानसिक उलझनों से घिरा होता है। ऐसे में मंदिर की घंटी (Temple Bell) की ध्वनि एक ऊर्जावान कंपन (harmonic frequency) उत्पन्न करती है, जो मन को तुरंत शांत करती है और व्यक्ति को उस परम सत्ता से जुड़ने में सहायता प्रदान करती है।

घंटी की यह गूंज न केवल मस्तिष्क को एकाग्र करती है, बल्कि व्यक्ति के भीतर ध्यान और भक्ति का वातावरण भी निर्मित करती है।

इसी कारण मंदिरों में घंटा अक्सर मुख्य प्रवेश द्वार या गुम्बद के नीचे लगाया जाता है, ताकि जैसे ही कोई भक्त भीतर आए — उसका मन ईश्वर की उपस्थिति के प्रति जागरूक हो जाए।

विज्ञान भी मानता है मंदिर की घंटी की शक्ति 

आधुनिक विज्ञान आज यह स्वीकार कर चुका है कि मंदिर में बजाई जाने वाली घंटी केवल धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसकी ध्वनि में ऐसी आवृत्तियाँ होती हैं जो मानव मस्तिष्क, शरीर और ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

घंटी को पारंपरिक रूप से पंचधातु — तांबा, पीतल, सोना, चांदी और लोहा — से तैयार किया जाता है। इन धातुओं का मेल इस तरह से संतुलित होता है कि जब घंटी बजती है, तो उससे उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगें (sound frequencies) शरीर के अलग-अलग हिस्सों को ऊर्जावान और संतुलित करती हैं।

घंटी की ध्वनि और उसकी आवृत्तियों का प्रभाव

Effect of Bell Sound and Its Frequencies
Effect of bell sound and its frequencies

आवृत्ति (Hz)       प्रभाव

963 Hz    –     पीनियल ग्रंथि (pineal gland )को सक्रिय करती है, जिससे उच्च आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है।
853 Hz    –     नकारात्मक विचार और तनाव को दूर कर, मानसिक शांति प्रदान करती है।
639 Hz    –     हृदय चक्र को संतुलित करती है; प्रेम, दया और समरसता बढ़ाती है।
440 Hz          तीसरी आँख (आज्ञा चक्र) को सक्रिय करती है; दिव्य अंतर्ज्ञान और जागरूकता को बढ़ाती है।
396 Hz    –      मूलाधार चक्र को संतुलन देती है; भय, चिंता और अवसाद को कम करती है।
285 Hz         शरीर की हीलिंग प्रक्रिया को तेज करती है; घाव भरने में मदद करती है।

निष्कर्ष

अब यह स्पष्ट हो चुका है कि मंदिर की घंटी (Temple Bell) सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह एक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध ऊर्जावान यंत्र है, जो हमारे भीतर की चेतना और संतुलन को जागृत करता है।

हमारे ऋषि-मुनियों और प्राचीन वास्तुशास्त्रियों ने ध्वनि की इस शक्ति को समझते हुए ही मंदिरों में घंटी, शंख और अन्य वाद्य यंत्रों का समावेश किया, ताकि जब भी कोई भक्त मंदिर में प्रवेश करे, उसका मन एकाग्र होकर ईश्वर से जुड़ सके।

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